सखि ,
आजकल रात में दूर कहीं दक्षिण दिशा से , पता नहीं राष्ट्र से या महाराष्ट्र से बड़ी मार्मिक आवाज में एक गाना सुनाई देता है
ये क्या हुआ कैसे हुआ
कब हुआ, क्यों हुआ
जब हुआ तब हुआ
ओ छोड़ो ये ना पूछो
हूं ये क्या हुआ ?
गाने वाले ने अपना सारा दर्द उडेल कर रख दिया है इस गाने में । कितना गहरा जख्म खाया होगा उसने जो इस कदर उभर रहा है इस गाने के द्वारा । जब कोई किसी को जख्म देता है तो देने वाला बुक्का फाड़कर हंसता है और जख्म खाने वाले की सिसकारियां वातावरण में गूंजती रह जाती हैं, क्रंदन की आवाज से दिल दहल जाते हैं सबके । तब उसकी आत्मा से जो बद्दुआएं निकलती हैं वे हिमालय का कठोर सीना भी फाड़कर रख देती हैं । सागर की विशालता को भी लांघ जाती हैं । आंखें झरनों की तरह फूट पड़ती हैं । मगर जख्म देने वाले को बड़ा मजा आता है दूसरे को तकलीफ में देखकर ।
मगर ये समय है सखि, सबका बदलता है । जख्म देने वालों को जब जख्म खाने को मिलते हैं तब वे इसी तरह के दर्द भरे गीत गाते हैं । ऊपर वाले की लाठी जब चलती है तो वह शोर नहीं करती है । मगर उसकी मार ऐसी पड़ती है कि सात पुश्तें भी याद आ जाती हैं । लगता है कि इसने भी पहले किसी को खून के आंसू रुलाया था । उसका बदला आज पूरा हो रहा है शायद । इसी का तो नाम संसार है । कहीं खुशी तो कहीं गम हजार है ।
एक बंदे ने गम का फसाना खत्म किया भी नही था कि दूसरा बंदा "राग चाणक्य" गाने लगा । इस राग को ईजाद हुए अभी ढाई तीन साल ही हुए हैं । ज्ञानी जी कहते हैं कि इस राग का आविष्कार इन्होंने ही किया था । इस बंदे को "आज का चाणक्य" कहते हैं सब । बड़ा गुमान था अपनी राजनीति , कूटनीति , नीति अनीति पर । लोग कहते हैं कि इस बंदे की नीति इतनी "गूढ और,गुप्त" होती है कि दायें हाथ को यह पता नहीं होता है कि बायां हाथ क्या कर रहा है या क्या करने वाला है ? सब राजनीति , कूटनीति , प्रबंधनीति धरी की धरी रह गई । एक झटके में सत्ता सुंदरी किसी और की हो गई । सारी होशियारी एक झटके में ही बिखर गई । वह भी अब इनके सुर में सुर मिलाकर गा रहा है
क्या से क्या हो गया
बेवफा , तेरे प्यार में
बेचारे , अपना दुखड़ा किसी को सुना भी नहीं सकते हैं । अरे भई, साख खोने का डर जो है । बड़ी मुश्किल से "चाणक्य" कहलवाया था "ईको सिस्टम" से । अब अगर उसे अपना दुखड़ा सुनाएंगे तो क्या इमेज रह जाएगी उनकी ? इसलिए गमों का पहाड़ ये अकेले ही उठाएंगे ।
अभी इनका "राग चाणक्य" समाप्त भी नहीं हुआ था कि नेपथ्य में "राग मातेश्वरी" बजने लगा । धीरे धीरे आवाज आने लगी
गम उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊंगा
सांस की लय पे तेरा नाम लिये जाऊंगा
सखि, क्या बताऊं , इस समवेत रुदन से प्रकृति भी डोलने लग गई । समुद्र उफनने लगे । प्रदेश में बाढ आ गई । अब ये लोग बाढ में डूबने लगे । तब मेरे एक ही बात ध्यान में आई सखि । जो जैसा बोयेगा वो वैसा ही काटेगा । अब इसमें कोई क्या कर सकता है सिवाय सुहानुभूति प्रकट करने के । ये काम यहां पर जनता द्वारा तबीयत से किया जाता है । जनता इन तीनों को सांत्वना देते हुए गा रही है
राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है
दुख तो अपना साथी है
एक बात तुमसे कह रहा हूं सखि , किसी को धोखा मत देना । क्योंकि ये धोखा लौटकर जरूर आता है । और जब लौटकर आता है तो सब कुछ तबाह कर जाता है । अच्छा तो अब चलते हैं सखि ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
7 7.22
Radhika
09-Mar-2023 10:31 AM
Nice
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Gunjan Kamal
06-Mar-2023 08:47 AM
👌👌
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Niharika
08-Jul-2022 10:27 PM
Bahut khub
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